हैं मिरे वजूद में मौजज़न मिरी उल्फ़तों की निशानियाँ न हुईं नसीब जो क़ुर्बतें उन्हीं क़ुर्बतों की निशानियाँ थकी हारी शक्ल निढाल सी किसी इम्तिहाँ के सवाल सी मिरे जिस्म-ओ-जान पे सब्त हैं तिरी फुर्क़तों की निशानियाँ कभी आँखें ग़ैज़ से तर-ब-तर कभी लअ'न-तअ'न ज़बान पर मुझे मेरी जाँ से अज़ीज़ हैं तिरी नफ़रतों की निशानियाँ हो वो बू-ए-गुल कि हो रागनी हो वो आबशार कि चाँदनी हैं क़दम क़दम पे सजी हुईं तिरी नुज़हतों की निशानियाँ कई बार रोज़ कई जगह मिरी रूह पढ़ती है फ़ातिहा मिरे पूरे जिस्म में दफ़्न हैं मिरी हसरतों की निशानियाँ कहीं नाचती हुईं मस्तियाँ कहीं भूक से हैं लड़ाइयाँ कहीं दौलतों के मुज़ाहिरे कहीं ग़ुर्बतों की निशानियाँ वो ज़मीन हो कि हो आसमाँ वो पहाड़ हों कि हों वादियाँ हैं चहार सम्त मिरे ख़ुदा तिरी रहमतों की निशानियाँ