हैं मिरी क़ब्र पे वो जल्वा-नुमा मेरे बाद इश्क़ का मेरे असर उन पे हुआ मेरे बाद और कुछ देर मिरे ग़म की कहानी सुन लो वर्ना फिर कौन करेगा ये गिला मेरे बाद देख उस गुल को किसी ग़ैर का देना न पयाम मैं कहे देता हूँ ऐ बाद-ए-सबा मेरे बाद क्यों न ख़ुश हूँ कि ग़म-ए-हिज्र से मर कर छूटा अब जो आएँ भी तो फिर लुत्फ़ है क्या मेरे बाद और कुछ ग़म नहीं ग़म है तो इसी का ग़म है लाश पर मेरी करेंगे वो बुका मेरे बाद उन से कह दे ये कोई जा के पयाम-ए-'शैदा' ध्यान रखना मिरा ऐ माह-लक़ा मेरे बा'द