हैं राहज़न भी अभी रहबरी के पर्दे में सियाह दिल हैं इसी रौशनी के पर्दे में सुकून-ए-क़ल्ब कहाँ ज़िंदगी के पर्दे में जब आदमी ही नहीं आदमी के पर्दे में मआल-ए-मंज़िल-ए-उल्फ़त अरे मआ'ज़-अल्लाह कभी किसी को मिला है ख़ुशी के पर्दे में दुआ-ए-ख़ैर करे जो भी इस तरफ़ आए निशान-ए-क़ब्र कहे ख़ामुशी के पर्दे में मज़ाक़-ए-शौक़ का बस इस क़दर है अफ़्साना ग़म-ए-शदीद है ''पैकर ख़ुशी के पर्दे में