हैरत है कि जो ज़ुल्म से तक़दीर बनाएँ कुछ लोग उन्हें साहब-ए-तौक़ीर बनाएँ इक ख़्वाब में रखें कोई गुज़रा हुआ लम्हा इक ख़्वाब से आइंदा की ता'बीर बनाएँ पत्थर पे करें नक़्श तिरे हिज्र का क़िस्सा पानी पे तिरे वस्ल की तस्वीर बनाएँ शायद किसी ज़िंदान से निकले नहीं अब तक ये लोग जो काग़ज़ पे भी ज़ंजीर बनाएँ इक बार अगर बाब-ए-सुख़न हम पे भी खुल जाए उस शख़्स को भी मो'तक़िद-ए-'मीर' बनाएँ