हज़ार क़ैद-ए-जवाँ से छुट कर बहार का आसरा करेंगे बहार भी हम क़फ़स-ज़दों को न रास आई तो क्या करेंगे अब और इस के सिवा न होगी क़फ़स में तस्कीन-ए-दिल की सूरत चमन की जानिब नज़र उठा कर कभी कभी हँस लिया करेंगे ये क्या ख़बर थी कि शाम-ए-फ़ुर्क़त मिरे लिए साज़गार होगी वो माह-ओ-अंजुम की आड़ ले कर मिरे फ़साने सुना करेंगे निगाह की बंदिशें सलामत जुनूँ की पाबंदियाँ मुसल्लम कहीं भरम खुल गया तो ऐ दिल मैं क्या करूँगा वो क्या करेंगे ये देखना है कि बा'द-ए-तर्क-ए-तअल्लुक़ात ऐ 'शकील' कब तक न कोई हम पर जफ़ा करेगा न हम किसी से वफ़ा करेंगे