हज़ार मरहले होंगे जुनूँ से आगे भी बसे हैं शहर कई सैल-ए-ख़ूँ से आगे भी हम एक दिन क़फ़स-ए-जाँ से बाहर आए तो पहुँच गए फ़लक-ए-नीलगूँ से आगे भी बिखर रही हैं दरून-ओ-बरूँ की सारी हदें लगाएँ ख़ेमा दरून-ओ-बरूँ से आगे भी हमें ख़बर हुई ये शहर सोने वाला है सो देख आए बदन के फ़ुसूँ से आगे भी कभी तो झाँक ले दीवार-ए-क़हक़हा से उधर कभी तो देख ले हद-ए-जुनूँ से आगे भी