हज़ार रंज-ए-सफ़र है हज़र के होते हुए ये कैसी ख़ाना-बदोशी है घर के होते हुए वो हब्स-ए-जाँ है बरसने से भी जो कम न हुआ घुटन ग़ज़ब की है इक चश्म-ए-तर के होते हुए मिरे वजूद को पैकर की है तलाश अभी मैं ख़ाक हूँ हुनर-ए-कूज़ा-गर के होते हुए सहर उजालने वाले किरन किरन के लिए तरस रहे हैं फ़रोग़-ए-सहर के होते हुए हर इंकिशाफ़ है इक इंकिशाफ़-ए-ला-इल्मी कमाल-ए-बे-ख़बरी है ख़बर के होते हुए गुरेज़ाँ मुझ से रहा है ये साया-ए-दीवार मैं धूप धूप जला हूँ शजर के होते हुए हम उस से मिल के करें अर्ज़-ए-हाल कुछ 'इरफ़ान' मुहाल है ये दिल-ए-हीला-गर के होते हुए