हज़ीं है बेकस-ओ-रंजूर है दिल मोहब्बत पर मगर मजबूर है दिल तुम्हारे नूर से मा'मूर है दिल अजब क्या है कि रश्क-ए-तूर है दिल तुम्हारे इश्क़ से मसरूर है दिल अभी तक मस्त है मख़मूर है दिल किया है याद उस याद-ए-जहाँ ने इलाही किस क़दर मसरूर है दिल बहुत चाहा न जाएँ तेरे दर पर मगर क्या कीजिए मजबूर है दिल फ़क़ीरी में उसे हासिल है शाही तुम्हारे इश्क़ पर मग़रूर है दिल तिरे जल्वे का है जिस दिन से मस्कन जवाब-ए-जल्वा-गाह-ए-तूर है दिल दो-आलम को भुला दें क्यूँ न 'अख़्तर' कि उस की याद से मा'मूर है दिल