हक़ बात ही कहेंगे सर-ए-दार देखना अहल-ए-क़लम की जुरअत-ए-इज़हार देखना देखें जिन्हें हैं दैर के दीवार-ओ-दर अज़ीज़ हम को तो सिर्फ़ सू-ए-दर-ए-यार देखना करता रहा क़लम यूँही शाख़ें जो बाग़बाँ नापैद होगा साया-ए-अश्जार देखना सरकार आप पर जो छिड़कते हैं जान आज बच कर चलेंगे कल ये नमक-ख़्वार देखना बुनियाद जिस की है हवस-ए-इक़्तिदार पर होने को है वो क़िलअ' भी मिस्मार देखना डाला जो तुम ने हाथ कुलाह-ए-अवाम पर लग जाएँगे सरों के भी अम्बार देखना