हक़ीक़त है कि नन्हा सा दिया हूँ मगर हर हाल में जलता रहा हूँ जमाल-ए-सुब्ह से ना-आश्ना हूँ किसी तारीक शब की बद-दुआ' हूँ वो ऐसा छा गया है ज़ेहन-ओ-दिल पर जिधर देखूँ उसी को देखता हूँ कोई तो ढूँड कर मुझ को निकाले मैं अपने शहर-ए-जाँ में खो गया हूँ जो है तमसील-ए-हुस्न-ए-पारसाई 'वली' मैं ऐसा रिंद-ए-पारसा हूँ