हालत उसे दिल की न दिखाई न ज़बाँ की ख़ैर उस ने न की बात तो हम ने भी कहाँ की पहले तो हँसा ज़ोर से फिर आह-ओ-फ़ुग़ाँ की मस्ती में क़लंदर ने बड़ी दूर की हाँ की अल्लाह का बंदा कोई घर से नहीं निकला तफ़्सीर सभी करते रहे कौन-ओ-मकाँ की एक उस का सरापा है कि बस में नहीं आता क्या हो गई हालत मिरे अंदाज़-ए-बयाँ की एक एक सितमगर को तसव्वुर में बुला कर शमशीर-ए-ज़बाँ हम ने भी कल ख़ूब रवाँ की तूफ़ान-ए-मआ'नी मिरे हर लफ़्ज़ के पीछे तेज़ी है हर इक शे'र में दिल्ली की ज़बाँ की सहरा-ए-अदम का भी 'शुजा' ख़ूब मज़ा है तुम सोचते रहते हो फ़क़त गुलशन-ए-जाँ की