हम आज ख़ुद को तुम्हारा ग़ुलाम करते हैं हर एक साँस तुम्हारे ही नाम करते हैं सिखा गई हैं अदब डालियाँ शजर की हमें लो हम जबीं को झुका कर सलाम करते हैं जिन्हें है फ़िक्र यहाँ पे ग़रीब लोगों की वो ही ग़रीबों का जीना हराम करते हैं सराए में न रुकेंगे न किसी बस्ती में हम इश्क़ वाले हैं दिल में क़ियाम करते हैं क़फ़स की क़ैद से अपनी रिहाई की हर दम गुज़ारिशें ये परिंदे तमाम करते हैं उन्हीं ने जीती हैं बाज़ी बड़ी बड़ी 'सारिक़' वही जो कछवे के जैसे ख़िराम करते हैं