हम अपने इश्क़ की बाबत कुछ एहतिमाल में हैं कि तेरी ख़ूबियाँ इक और ख़ुश-ख़िसाल में हैं तमीज़-ए-हिज्र-ओ-विसाल इस मक़ाम पर भी है हिसाब-ए-राह-ए-मोहब्बत में गरचे हाल में हैं कोई भी पास नहीं तो तिरा ख़याल न ग़म ब-क़ौल-ए-पीर-ए-जहाँ-दीदा हम विसाल में हैं बहुत ज़रूरी नहीं है कि तू सबब ठहरे ये बात अपनी जगह हम किसी मलाल में हैं गुज़िश्ता साल रहा जिन पे तंग अर्सा-ए-वक़्त वो सारे ख़्वाब ब-ताबीर अब के साल में हैं