हम अपने-आप की पहचान ले के आए हैं नए सुख़न नए इम्कान ले के आए हैं हवा ने वार किया तो जवाब पाएगी कि हम चराग़ भी तूफ़ान ले के आए हैं चराग़-ए-क़ुर्ब से कर दीजिए उन्हें रौशन बुझे बुझे से कुछ अरमान ले के आए हैं जवाब दे न सकेगा हमारी बातों का कि आप आइना हैरान ले के आए हैं इन आँसुओं का कोई क़द्र-दान मिल जाए कि हम भी 'मीर' का दीवान ले के आए हैं हमारे पास फ़क़त धूप है ख़यालों की झुलसते ख़्वाबों की दुक्कान ले के आए हैं ये ज़ख़्म-ए-दिल नहीं एहसान की निशानी है हम उस निगाह का एहसान ले के आए हैं जो पारसा हो तो क्यूँ इम्तिहाँ से डरते हो हम ए'तिबार का मीज़ान ले के आए हैं उन्हीं पे सारे मसाइब का बोझ रक्खा है जो तेरे शहर में ईमान ले के आए हैं