हम अपना जो क़िस्सा सुनाने लगे वो बोले कि फिर सर फिराने लगे कहा था उठा पर्दा-ए-शर्म को वो उल्टा हमीं को उठाने लगे ज़रा देखिए उन की सन्नाइयाँ मुझे देख कर मुँह बनाने लगे कहा मैं ने मिल या मुझे मार डाल वो झट आस्तीनें चढ़ाने लगे मुझे आते देखा जूँ ही दूर से क़दम-वार जल्दी उठाने लगे उठे वो तो इक हश्र बरपा किया जो बैठे तो फ़ित्ना उठाने लगे ग़िज़ा ग़म में थी मेरी ख़ून-ए-जिगर अब आ'दा का भी रश्क खाने लगे कमाल-ए-तअश्शुक़ नहीं है हुनूज़ अभी से वो मुँह को छुपाने लगे ख़फ़ा हो के जब बे-बुलाए गया मुझे देख कर मुस्कुराने लगे ग़नीमत है इतना तो उट्ठा हिजाब कि अब ख़्वाब में भी वो आने लगे वो दिल के उड़ाने से वाक़िफ़ न थे हमीं तो ये घातें बताने लगे मगर उन पे राज़-ए-मोहब्बत खुला जो 'मजरूह' से बच के जाने लगे