हम अपने नाम से हरगिज़ कहीं जाने नहीं जाते

हम अपने नाम से हरगिज़ कहीं जाने नहीं जाते
तुम्हारा नाम न लेते तो पहचाने नहीं जाते

कभी जो भूले भटके से भी मयख़ाने नहीं जाते
ये न समझो कि उन के पास पैमाने नहीं जाते

किसी के दिल में क्या है माथे पे लिक्खा नहीं होता
कि अपने लोग भी तो हम से पहचाने नहीं जाते

अँधेरे रहबरी करते हैं परवानों की शम्अ' तक
कि दिन में शम्अ' के नज़दीक परवाने नहीं जाते

मिरे पा-ए-तलब मुझ को तुम्हारे दर पे ले आए
किसी और दर पे अब हम हाथ फैलाने नहीं जाते

उन्हें चुगने को उड़ कर दूर तक जाना ही पड़ता है
किसी भी घोंसले में ख़ुद-ब-ख़ुद दाने नहीं जाते

हमारी मंज़िल-ए-मक़्सूद तो है क़ब्र से आगे
वहाँ तक भी हमें ये लोग पहुँचाने नहीं जाते

मिरे पुर-सोज़ नग़्मे तर्जुमानी हैं मोहब्बत की
हम उन की बज़्म में यूँ ही ग़ज़ल गाने नहीं जाते

कभी जब ज़ख़्म लगते हैं तो काँटे चुटकी भरते हैं
गुलों के गुल-नुमा ख़ंजर तो पहचाने नहीं जाते

हसीनों की नुमाइश में मोहब्बत तो नहीं दिखती
ये पहचाने तो जाते हैं मगर जाने नहीं जाते

मोहब्बत के पुजारी अपनी पूजा ऐसे करते हैं
सनम-ख़ाने चले जाते हैं बुत-ख़ाने नहीं जाते

कई राज़-ए-मोहब्बत दिल में पोशीदा ही रहते हैं
ये गौहर जौहरी से भी तो पहचाने नहीं जाते

निछावर जान करने को ये 'साहिल' उस पे जाते हैं
कि जलने के लिए शम्अ' पे परवाने नहीं जाते


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