हम बात तिरे मुँह पे खरी करने लगे हैं जा तुझ को तख़य्युल से बरी करने लगे हैं हाँ रास नहीं हम को मोहब्बत का ख़ज़ाना थक-हार के हम सौदागरी करने लगे हैं मिट्टी से बनाया था जो साहिल पे घरौंदा कुछ बच्चे उसे बारा-दरी करने लगे हैं इस वास्ते लहजे को बदल डाला है हम ने ख़ूशाब को हम देख मिरी करने लगे हैं मुद्दत से तख़य्युल में थी जो मूर्ती तेरी हम अब के उसे छू के परी करने लगे हैं जो लोग नहीं जानते मिट्टी की हक़ीक़त वो लोग भी अब कूज़ा-गरी करने लगे हैं क़ुर्बान 'हसन' ऐसे फ़क़ीरों पे मिरा दिल जो पेड़ के पत्तों को दरी करने लगे हैं