हम भी नादाँ हैं समझते हैं कि छट जाएगी तीरगी नूर के पैकर में सिमट जाएगी लोग कहते हैं मोहब्बत से तमन्ना जिस को मेरी शह-ए-रग उसी तलवार से कट जाएगी तुम जिसे बाँट रहे हो वो सितम-दीदा-ज़मीं ज़लज़ला आएगा कुछ ऐसा कि फट जाएगी क़ैद हूँ गुम्बद-ए-बे-दर में मिरी अपनी सदा मुझ तक आएगी मगर आ के पलट जाएगी बाँट जी भर के उसे दहर के महरूमों में प्यार दौलत तो नहीं है कि जो घट जाएगी बाद-ए-सरसर से न घबरा कि ये चल कर 'आरिफ़' कितने चेहरों से नक़ाबों को उलट जाएगी