हम दिल की निगाहों से जहाँ देख रहे हैं वो बात नज़र वाले कहाँ देख रहे हैं जिन हाथों में कल अम्न का परचम था उन्ही में हैरत है कि शमशीर-ओ-सिनाँ देख रहे हैं क्या जानिए क्यूँ सोग का मंज़र है चमन में ख़ामोश ज़बाँ अश्क रवाँ देख रहे हैं आख़िर कोई अफ़सोस करे भी तो कहाँ तक हर सम्त तबाही का समाँ देख रहे हैं आएगा दिल-ओ-जाँ भी लुटाने का ज़माना कुछ आज भी उल्फ़त का निशाँ देख रहे हैं मुमकिन है ख़िरद-मंदों को दीवाना बना दे जो अज़्म मिरे दिल में जवाँ देख रहे हैं उन से कोई उम्मीद-ए-वफ़ा रखे तो कैसे हर बात में जो सूद-ओ-ज़ियाँ देख रहे हैं ख़ामोशी से हल अपने मसाइल नहीं होंगे कुछ कहिए 'सहर' अहल-ए-ज़बाँ देख रहे हैं