हम दिलों के क़ुर्ब का मुँह देखते रह जाएँगे याद रह जाएगी या कुछ ख़्वाब से रह जाएँगे इस तज़ब्ज़ुब में मिरी मेहनत अकारत जाएगी ख़ुद ही वो आ जाएँगे और ख़त लिखे रह जाएँगे हम फ़सील-ए-आब-ओ-गिल में दर बनाने के लिए वक़्त के तह-ख़ाने में सर पीटते रह जाएँगे अपने चेहरे तकते तकते फिर सहर हो जाएगी क्या कहें इक दूसरे को सोचते रह जाएँगे वो मिरा हो जाएगा ऐ 'शाह' आख़िर एक दिन सोचता हूँ फिर भी उस से कुछ गिले रह जाएँगे