हम एक उम्र जले शम-ए-रहगुज़र की तरह उजाला ग़ैरों से क्या माँगते क़मर की तरह कहाँ के जैब-ओ-गरेबाँ जिगर भी चाक हुए बहार आई क़यामत के नामा-बर की तरह करम कहो कि सितम दिल-दही का हर अंदाज़ उतर उतर सा गया दिल में नेश्तर की तरह न हादसों की कमी है न शोरिशों की कमी चमन में बर्क़ भी पलती है बाल-ओ-पर की तरह न-जाने क्यूँ यहाँ वीरानियाँ बरसती हैं सभी के घर हैं ब-ज़ाहिर हमारे घर की तरह ख़ुदा करे कि सदा कारोबार-ए-शौक़ चले जो बे-नियाज़ हो मंज़िल से इस सफ़र की तरह बस और क्या कहें रूदाद-ए-ज़िंदगी 'ताबाँ' चमन में हम भी हैं इक शाख़-ए-बे-समर की तरह