हम ग़रीबों पर जफ़ा अच्छी नहीं बेकसों की बद-दुआ' अच्छी नहीं मौत आए ये दुआ अच्छी नहीं हिज्र में भी मौत क्या अच्छी नहीं दिल-लगी में भी तो बिगड़ी है बहुत बात ये ज़ुल्फ़-ए-रसा अच्छी नहीं हाथ रंगने का लहू से हो गुमाँ शोख़ इतनी भी हिना अच्छी नहीं क्यूँ उड़ाती ख़ाक आती है बहार छेड़ असीरों से सबा अच्छी नहीं काम मयख़ाने का हो जाएगा बंद चश्म-ए-साक़ी की हया अच्छी नहीं बोसा-ए-लब से नहीं चलता है काम गालियों की ये सज़ा अच्छी नहीं शैख़ ये कहता गया पीता गया है बहुत ही बद-मज़ा अच्छी नहीं दिल वो सब के लें ये है अच्छी अदा जान लेने की अदा अच्छी नहीं ग़म ग़लत करने को मैं कितनी पियूँ रात-दिन ग़म की घटा अच्छी नहीं एक काफ़िर मुझ से ये कहता गया रात-दिन याद-ए-ख़ुदा अच्छी नहीं मय-कदे को छोड़ का'बे जा 'रियाज़' ग़फ़लत ऐ मर्द-ए-ख़ुदा अच्छी नहीं