हम ही ज़र्रे रुस्वाई से क्या शिकवा हरजाई से इश्क़ में आख़िर ख़ार हुए लाख चले दानाई से गिरवीदा करते हैं फूल रंगों और रानाई से मिलते हैं अनमोल रतन सागर की गहराई से झूट के ख़ोल में बैठा हूँ डरता हूँ सच्चाई से 'जोश' ने सीखी है पर्वाज़ सिर्फ़ तिरी अंगड़ाई से