हम खड़े हैं हाथ यूँ बाँधे हुए जैसे तू हो रास्ता रोके हुए किस तरह तय हो सफ़र तन्हाई का दूर तक हैं आइने रक्खे हुए रास्ता पगडंडियों में बट गया इक मुसाफ़िर के कई फेरे हुए लोग रुख़्सत हो चुके बाज़ार से हम अभी तक हैं दुकाँ खोले हुए साए में आइन्दगी का दुख निहाँ धूप में हैं वाक़िए लिक्खे हुए चाहता हूँ तेरे सपने देखना देखता हूँ हादसे होते हुए तन्हा अपने सामने बैठा हूँ मैं और मेरे हाथ हैं फैले हुए जल रहे हैं अपनी ही सोचों से हम अपनी ही दहलीज़ में बैठे हुए हो गईं मुझ को सभी बीमारियाँ दूसरे बीमार तब अच्छे हुए घुन तो 'मोहसिन' जिस्म को लगना ही था एक मुद्दत हो गई रक्खे होए