हम कि अफ़्कार को तज्सीम किया करते हैं हर्फ़-ओ-अल्फ़ाज़ की तहरीम किया करते हैं बंद कर लेते हैं आवारा हवा मुट्ठी में फिर फ़ज़ा में उसे तक़्सीम किया करते हैं वक़्त जब हाथ नहीं आता तो रोज़-ओ-शब में इंतिक़ामन उसे तक़्वीम किया करते हैं कब सितारा कोई माथे की शिकन में उतरा सब फ़ुसूँ साहब-ए-तंजीम किया करते हैं हम को इल्ज़ाम न दीजे कोई 'शाकिर'-कुंडान हम तो निस्बत की भी तकरीम किया करते हैं