हम किसी बात पर नहीं रोते अपनी औक़ात पर नहीं रोते तुम अगर होते कर्बला वाले जंग में मात पर नहीं रोते सुब्ह को शाम की नहीं पर्वा दिन भी अब रात पर नहीं रोते ज़िंदगी उन पे नाज़ करती है जो भी हालात पर नहीं रोते हिज्र का जश्न हम मनाएँ क्या सर्द जज़्बात पर नहीं रोते उन का दिल दिल नहीं है पत्थर है जो फ़सादात पर नहीं रोते