हम को आग़ाज़-ए-सफ़र मारता है मारता कोई नहीं डर मारता है ज़िंदगी है मिरी मुश्किल में पड़ी इश्क़ है कि बे-ख़बर मारता है तिरी मुझ से नहीं क़ुर्बत न सही मुझ को तो हुस्न-ए-नज़र मारता है ज़िंदगी उस की है मुहताज मगर दे भी सकता है मगर मारता है इक हँसी गूँजी थी घर में मेरे मुझ को यादों का असर मारता है