हम को तो बे-सवाल मिले बे-तलब मिले हम वो नहीं हैं साक़ी कि जब माँगें तब मिले फ़रियाद ही में अहद-ए-बहाराँ गुज़र गया ऐसे खुले कि फिर न कभी लब से लब मिले हम ये समझ रहे थे हमीं बद-नसीब हैं देखा तो मय-कदे में बहुत तिश्ना-लब मिले किस ने वफ़ा का हम को वफ़ा से दिया जवाब इस रास्ते में लूटने वाले ही सब मिले मिलते हैं सब किसी न किसी मुद्दआ' के साथ अरमान ही रहा कि कोई बे-सबब मिले रक्खा कहाँ है इश्क़ ने 'आजिज़' को होश में मत छेड़ियो अगर कहीं वो बे-अदब मिले