हम न होंगे तो हमें याद करोगे यारो तज़्किरे होंगे यही जब भी मिलोगे यारो हम ने रूदाद-ए-वफ़ा ख़ुद से मुरत्तब की है दास्ताँ फिर ये कभी सुन न सकोगे यारो हम न होंगे तो किसे पाओगे दिल का महरम हम न होंगे तो ये दुख किस से कहोगे यारो महफ़िलें यूँही रहेंगी यूँही यारों के हुजूम लेकिन इक बात जिसे फिर न सुनोगे यारो हम से ज़िंदा है रह-ओ-रस्म-ए-मोहब्बत अब तक उस को जाँ दे के कहाँ ज़िंदा रखोगे यारो हम ने हर बार हवादिस की कलाई मोड़ी तुम उन्हें किस तरह मग़्लूब करोगे यारो ज़िक्र होगा लब-ए-अय्याम पे अक्सर अपना तुम हमें मुसहफ़-ए-आलम में पढ़ोगे यारो वक़्त पूजेगा हमें वक़्त हमें ढूँडेगा और तुम वक़्त के हम-राह चलोगे यारो हमीं तारीख़-ए-ज़माना के मुरत्तब हैं 'ख़लीक़' हमें तारीख़ में इक रोज़ कहोगे यारो