हम ने जुनून-ए-इश्क़ में कुफ़्र ज़रा नहीं किया उस से मोहब्बतें तो कीं उस को ख़ुदा नहीं किया उम्र हुई कि देख कर नींद उचट गई थी हाँ आँख ने फिर कभी रक़म ख़्वाब नया नहीं किया तुझ से कहा था ख़ुशबुएँ उस के बदन की लाइयो मेरा ये काम आज तक तू ने सबा नहीं किया हम सा भी इस जहान में होगा न कोई यर्ग़माल क़ैद से उस की आज तक ख़ुद को रिहा नहीं किया कैसे कहूँ कि दोस्ती तुम ने निबाही दोस्तो तुम ने कुरेद कर कोई ज़ख़्म हरा नहीं किया देख तो बंदगी में भी कैसा अना का पास था लाख दुखों के बावजूद कोई गिला नहीं किया सोच रखा था इश्क़ से रंग भरेंगे शे'र में दिल ने मगर नहीं क्या इश्क़ 'ज़िया' नहीं किया