हम पे लाज़िम था पहुँचना सो यहाँ तक पहुँचे शौक़ रुकता ही नहीं चाहे जहाँ तक पहुँचे ला-मकाँ से जो चले कौन-ओ-मकाँ तक पहुँचे बे-करानी से गए हद्द-ए-गुमाँ तक पहुँचे कोई सहरा को चला कोई समुंदर को गया तेरी आँखों के सुख़न अहल-ए-जहाँ तक पहुँचे कोई अपनी भी तो ले जाए कभी बात वहाँ कितने पैग़ाम वहाँ से तो यहाँ तक पहुँचे दिल का उलझाव है दाग़-ए-दिल-ए-आदम 'आमिर' दिल को मालूम नहीं दाग़ कहाँ तक पहुँचे