हम पे सौ ज़ुल्म-ओ-सितम कीजिएगा एक मिलने को न कम कीजिएगा भागते ख़ल्क़ से कुछ काम नहीं क़स्द है आप से रम कीजिएगा गर यही ज़ुल्फ़ ओ यही मुखड़ा है ग़ारत-ए-दैर-ओ-हरम कीजिएगा गर रही यूँही गुल-फ़िशानी-ए-अश्क जा-ब-जा रश्क-ए-इरम कीजिएगा जी में है आज बजाए मक्तूब यही बैत उस को रक़म कीजिएगा मेहरबानी से फिर ऐ बंदा-नवाज़ कहिए किस रोज़ करम कीजिएगा नींद आवेगी न तन्हा 'बेदार' ता न ख़्वाब उस से बहम कीजिएगा