हम से मिलते हैं वो दर-पर्दा शिकायत के एवज़ चाँद रू-पोश हो जिस तरह लताफ़त के एवज़ अपनी हस्ती को मिटा कर ही तो पाया है उसे हम को हासिल है रज़ा उस की इताअ'त के एवज़ ज़िंदगानी तिरी बर्बाद नहीं होती कभी हर अमल होता जो अल-हम्द की आयत के एवज़ हुस्न-ए-जिद्दत से भी आरास्ता कर लीजे कलाम आप पाबंद-ए-रिवायत न हों आदत के एवज़ मुनहसिर 'आसी' पे किया और भी मुनइ'म हैं बहुत पास जो कुछ रखो रहता है किफ़ायत के एवज़