हम से थीं रौनक़ें बज़्म-आराईयाँ अब सजाते रहो अपनी तन्हाइयाँ कोई ख़ुशबू नहीं कोई नग़्मा नहीं रोज़ चलने को चलती हैं पुरवाइयाँ मेरी जाँ मैं तुझे किस तरह जानता इस क़दर वुसअ'तें इतनी गहराइयाँ देख लीजे कहीं आप ही तो नहीं मेरी आँखों में हैं चंद परछाइयाँ कैसा अफ़्सोस मातम हो किस बात का फिर वही पस्तियाँ और पसपाइयाँ हैसियत क्या है तहज़ीब-ओ-अक़दार की कोरे काग़ज़ पे हैं ख़ामा-फ़रसाइयाँ