हम-सुख़न हम-ज़बाँ मिले न मिले आप सा मेहरबाँ मिले न मिले राज़ दिल का तो खुल ही जाएगा अश्क-ए-ग़म को ज़बाँ मिले न मिले एक लम्हा बहुत है क़ुर्बत का मुझ को उम्र-ए-रवाँ मिले न मिले प्यार की इक नज़र ही काफ़ी है दौलत-ए-दो-जहाँ मिले न मिले चल तो निकला हूँ जुस्तुजू में तिरी ज़र्रे को आसमाँ मिले न मिले शायरी 'जोश' तक थी ऐ 'पर्वाज़' अब कोई नुक्ता-दाँ मिले न मिले