हम तो चाहत में उमीदों के पुजारी ठहरे वो इसी दश्त में जज़्बात से आरी ठहरे तेरे वा'दों ने सर-ए-शाम ही दम तोड़ दिया जीने मरने के सभी अह्द जो भारी ठहरे राह-ए-उल्फ़त में बिछे फूल तुम्हारी क़िस्मत जो भी दरपेश हो मुश्किल वो हमारी ठहरे इक झलक मुझ को है मतलूब ज़माने वालो इस ज़ियाँ-ख़ाने की हर चीज़ तुम्हारी ठहरे