हम तो दिन-रात इसी सोच में मर जाएँगे तुझ से बिछड़ेंगे तो किस हाल में घर जाएँगे हाँ इसी पेड़ के नीचे मैं लहू रोया था लोग इस राह से गुज़़रेंगे तो डर जाएँगे हम हैं हस्सास बहुत हम को बचा कर रखना फिर न सिमटेंगे जो इक बार बिखर जाएँगे अब तो सहरा भी गुलिस्ताँ है बहार आने पर शहर को छोड़ के दीवाने किधर जाएँगे आ गई नींद उसे भूल भी जाएगा 'असीर' आ गया सब्र मुझे ज़ख़्म भी भर जाएँगे