हम उन्हें यूँही आज़माएँगे प्यार में शर्त क्यूँ लगाएँगे ये परिंदे हैं आशियाने को पर निकलते ही भूल जाएँगे याद रखना तुम्हारी आँखों में हम बहुत जल्द झिलमिलाएँगे क्या तुम्हें तब यक़ीन आएगा लोग जब उँगलियाँ उठाएँगे दरमियाँ अपने आ गई जो ख़लीज उस पर इक रोज़ पुल बनाएँगे बेवफ़ा ज़िंदगी के रिश्ते को आख़िरी साँस तक निभाएँगे एक बाज़ी तिरी ख़ुशी के लिए तुझ से दानिस्ता हार जाएँगे दौर ऐसा भी एक आएगा ज़र्फ़ कम-ज़र्फ़ आज़माएँगे आप को आजिज़ी जताएगी वो तकब्बुर में हार जाएँगे प्यार की गुफ़्तुगू नहीं कीजे ज़ख़्म सोए हैं जाग जाएँगे