हम उस का नक़्श-ए-पा भूले हुए हैं ख़ुदा-वंदा ये क्या भूले हुए हैं चलो फिर लौट जाएँ उस तरफ़ को जिधर का रास्ता भूले हुए हैं उसे सोचें तो याद आता है हम को कि हम तो मुद्दआ' भूले हुए हैं घिरे हैं तंगनाओं में कुछ ऐसे समुंदर की हवा भूले हुए हैं ये साहिल पर ज़रूर उतरेंगे इक दिन परिंदे रास्ता भूले हुए हैं क़सम हम को अता शीरीं-लबों की बयाँ का ज़ाइक़ा भूले हुए हैं