हम यार की ग़ैरों पे नज़र देख रहे हैं गो मुँह पे न लाएँगे मगर देख रहे हैं मुँह मेरी तरफ़ है तो नज़र ग़ैर की जानिब करते हैं किधर बात किधर देख रहे हैं कै रोज़ रक़ीबों से निभी रस्म-ए-मोहब्बत हम भी यही ऐ रश्क-ए-क़मर देख रहे हैं क़ासिद से जो बीमार बहुत मुझ को सुना था अख़बार में मरने की ख़बर देख रहे हैं पुरसाँ नहीं कोई भी 'नसीम' अहल-ए-हुनर का दुनिया की हवा शाम ओ सहर देख रहे हैं