हमा-गिर्या सिल्क-ए-शबनम हमा-अश्क बज़्म-ए-अंजुम जो न गुल भी मुस्कुराए तो कहाँ रहे तबस्सुम न ख़ता मिरी नज़र की न गुनह तिरे करम का कि नसीब-ए-आशिक़ाँ है ये शिकस्त-ए-बे-तसादुम थी भरी बहार लेकिन गुल-ओ-बू-ए-गुल ने समझा निगह-ए-चमन से छुप कर जो कभी मिले हैं हम तुम कहीं बर्क़ जगमगाई कहीं फूल मुस्कुराए जो तिरे लबों को छूकर हुआ मुंतशिर तबस्सुम कोई राह है मोहब्बत तो हुजूम है जवानी कहीं पाँव डगमगाए कहीं ज़िंदगी हुई गुम जिसे ग़म से कुछ मिला है वही हम-नफ़स है मेरा जो शिकस्ता साज़-ए-दिल हो तो सुनो मिरा तरन्नुम ये समझ लो ज़िंदगी है सफ़र-ए-हज़ार-जादा ग़म-ए-कारवाँ से छूटे तो 'नुशूर' खो गए तुम