हमारा इश्क़ है तफ़रीक़ ईं-ओ-आँ से बुलंद ज़मीं-नशीं हैं मगर हैं हम आसमाँ से बुलंद बहार ख़ाक-ब-दामाँ है पस्तियों में अभी चमन अगरचे उमीदों का है ख़िज़ाँ से बुलंद हयात-ए-क़तरा है दरिया के साथ वाबस्ता वो उड़ गया जो हुआ मौजा-ए-रवाँ से बुलंद ख़िराम-गाह-ए-निगाराँ अगर नहीं न सही मगर मैं दिल को समझता हूँ कहकशाँ से बुलंद मज़ाक़-ए-इश्क़ नहीं पा-ए-बंद-ए-दैर-ओ-हरम हमारा मस्लक-ए-दीं है हर आस्ताँ से बुलंद 'सलाम' हँसती हुई बिजलियों का तोड़ ये है कि आशियाँ में रहो फ़िक्र-ए-आशियाँ से बुलंद