हमारा नाम पुकारे हमारे घर आए ये दिल तलाश में जिस की है वो नज़र आए न जाने शहर-ए-निगाराँ पे क्या गुज़रती है फ़ज़ा-ए-दश्त-ए-अलम कोई तो ख़बर आए निशान भूल गई हूँ मैं राह-ए-मंज़िल का ख़ुदा करे कि मुझे याद-ए-रहगुज़र आए मैं आँधियों में भी फूलों के रंग पढ़ लूँगी तिरे बदन की महक लौट कर अगर आए ग़ुबार ग़म का दयार-ए-वफ़ा में उड़ता है मगर ये अश्क बहुत काम चश्म-ए-तर आए सफ़र का रंग हसीं क़ुर्बतों का हामिल हो बहार बन के कोई अब तो हम-सफ़र आए नई सहर का मैं 'गुलनार' इस्तिआरा हूँ फ़ज़ा-ए-तीरा-शबी ख़त्म हो सहर आए