हमारे दरमियाँ जो फ़ासला है महज़ कुछ रंग-ओ-बू का मसअला है बड़ी तन्हाइयाँ हैं ज़ेहन में अब हमारे साथ में इक क़ाफ़िला है मैं हर मंज़र में शामिल हो रही हूँ मिरा ख़ुद से न कोई सिलसिला है मैं आँखें बंद अपनी कर रही हूँ मोहब्बत जाने कैसा मश्ग़ला है सुनो ये शाम अब ढलने लगी है बता दो जो तुम्हारा फ़ैसला है