हमारे दिल में मचलेगी किसी की आरज़ू कब तक जुनून-ए-इश्क़ में भटकेंगे हम यूँ कू-ब-कू कब तक ये क्या मंज़िल न आएगी हमारे रू-ब-रू कब तक रहेंगे दश्त-ए-ग़ुर्बत में असीर-ए-जुस्तजू कब तक ग़म-ए-हस्ती का भी कुछ तो मुदावा ढूँढना होगा ग़म-ए-हस्ती मिटाएँगे भला जाम-ओ-सुबू कब तक बहारों की है आमद का जिन्हें दा'वा वो बतलाएँ चमन में आएगी आख़िर बहार-ए-रंग-ओ-बू कब तक बला-नोशों को आता है तरीक़-ए-ज़िंदगी नासेह जनाब-ए-शैख़ सीखेंगे तरीक़-ए-गुफ़्तुगू कब तक कभी तो आरज़ू बर आएगी जाँबाज़ अपनी भी बिल-आख़िर अपने अश्कों से करेंगे हम वुज़ू कब तक