हमारे हाथ में जब कोई जाम आया है तो लब पे कितने ही प्यासों का नाम आया है कहाँ का नूर यहाँ रात हो गई गहरी मिरा चराग़ अँधेरों के काम आया है ये क्या ग़ज़ब है जो कल तक सितम-रसीदा थे सितमगरों में अब उन का भी नाम आया है तमाम उम्र कटी उस की जुस्तुजू करते बड़े दिनों में ये तर्ज़-ए-कलाम आया है बढ़ूँ तो राख बनूँ मुड़ चलूँ तो पथरा जाऊँ सफ़र में शौक़ के नाज़ुक मक़ाम आया है ख़बर भी है मिरे गुलशन के लाला ओ गुल को मिरा लहू भी बहारों के काम आया है वो सर-फिरे जो निगह-दारी-ए-जुनूँ में रहे 'सुरूर' उन में हमारा भी नाम आया है