हमारे हाथ में ख़ंजर नहीं थे किसी भी वक़्त हम कायर नहीं थे हर इक ग़म से शनासा हो गए हैं कभी हम रंज के ख़ूगर नहीं थे वो कितने ख़ुश थे बे-छत की ज़मीं पर सबब ये है कि उन के घर नहीं थे वो बातें कर रहे थे आसमाँ की वो जिन के बाज़ुओं में पर नहीं थे उन्हें थी फ़िक्र नाहक़ अपने सर की मिरे तो हाथ में पत्थर नहीं थे हुई थी शे'र से तम्हीद पहले वो सब नक़्क़ाल थे शाइ'र नहीं थे उसे देखें पलट कर फिर दोबारा तिरी गलियों में वो मंज़र नहीं थे जो चलते थे हमारे साथ 'असग़र' ज़रा आगे थे वो रहबर नहीं थे