हमारे लहजे में बेहतर है इंकिसारी हो मगर ज़बाँ पे जो बात आए सब पे भारी हो किसी को ठेस न पहुँचे ये अपनी कोशिश है मगर लगे जो किसी दिल पे ज़र्ब कारी हो रह-ए-हयात में शायद ही वो मक़ाम आए कि नग़्मा-हा-ए-जुनूँ पर सुकूत तारी हो वफ़ा का ज़िक्र अगर आए उस की महफ़िल में तो बात जो भी हो जैसी हो बस हमारी है तमाम-उम्र गुज़ारी है उस की ख़िदमत में हमारे नाम का सिक्का अदब में जारी हो तिरे करम से हमेशा ही ख़ुश रहा 'अनवर' मिरे ख़ुदा न कभी लब पे आह-ओ-ज़ारी हो