हमारे नाकाम तजरबों की किसी को कोई ख़ुशी नहीं थी हमें बुज़ुर्गों की राएगानी का ग़म नहीं है तो क्या ग़लत है हमें बड़ों ने यही कहा था कि ला ही सच है सो घर की छत पर किसी जमाअत किसी ख़ुदा का अलम नहीं है तो क्या ग़लत है कि साइंसी तौर पर भी दोनों का कोई इम्काँ नहीं सो कह दूँ तुम्हारा मिलना ख़ुदा के मिलने से कम नहीं है तो क्या ग़लत है