हमारे साथ जिसे मौत से हो प्यार चले कोई चले न चले हम तो सू-ए-दार चले न दौर-ए-जाम न अब क़िस्सा-ए-बहार चले उन्हीं का ज़िक्र चले और बार बार चले रुख़-ए-ज़माना बदलने चले थे दीवाने तिरे हुज़ूर मगर किस का इख़्तियार चले हयात-ए-इश्क़ का हासिल थे बस वही लम्हे जो तेरी अंजुमन-ए-नाज़ में गुज़ार चले उधर मनाए गए ख़ूब जश्न-ए-दार-ओ-रसन कफ़न-ब-दोश जिधर तेरे जाँ-निसार चले ये ग़म नहीं कि हमीं को यहाँ अमाँ न मिली ख़ुशी ये है कि तिरी अंजुमन सँवार चले हमीं चमन में पयाम-ए-बहार लाए थे चमन से ले के हमीं हसरत-ए-बहार चले मिरी तरफ़ से मुबारक हो अहल-ए-गुलशन को जो मेरे ब'अद कभी बाद-ए-नौ-बहार चले ये इंक़लाब अजब है कि मय-कदे से 'शमीम' किधर ये तेग़-ब-कफ़ हो के बादा-ख़्वार चले